आध्यात्मिक विचार - 07-02-2011

गृहस्थ को मन से उदार होना चाहिये और साधु को मन से विरक्त होना चाहिये है।

जो गृहस्थ व्यक्ति मन से उदार होता है और तन से परमार्थ कार्य करता है, ऎसा व्यक्ति एक सच्चे सन्यासी के समान ही होता है।

जो व्यक्ति तन से सन्यास धारण करता है और मन से संसार के चिंतन में मग्न रहता है ऎसा व्यक्ति पाखंडी होता है।