आध्यात्मिक विचार - 07-03-2011

भक्ति-कर्म के द्वारा ही अनन्य भक्ति को प्राप्त किया जा सकता है।

एक भक्ति वह होती है जिसे किया जाता है और दूसरी भक्ति वह होती है जो भगवान की कृपा से प्राप्त होती है।

जो भक्ति की जाती है वह तो भक्ति रूपी कर्म होता है, और जो भक्ति भगवान की कृपा से प्राप्त होती है वह अनन्य-भक्ति होती है।