कभी भी आवश्यकता से अधिक किसी भी वस्तु को पाने की कामना नहीं करनी चाहिये, आवश्यकतायें तो आसानी से पूर्ण हो जाती हैं लेकिन कामनायें कभी शान्त नहीं हो पाती हैं।
प्रत्येक व्यक्ति को सबसे पहले अपनी आवश्यकता को पहचानने का प्रयत्न करना चाहिये, कामनायें केवल संतुष्टि के भाव से ही शान्त हो पाती हैं।